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कैसा हो झारखंड का बजट, संसदीय अध्ययन केंद्र ने वित्तमंत्री राधाकृष्ण किशोर को दिये ये सुझाव 

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अयोध्या नाथ मिश्र 
सामाजिक-आर्थिक एवं संसदीय अध्ययन केंद्र ने वित्तमंत्री राधाकृष्ण किशोर को ज्ञापन सौंपकर आगामी बजट के लिए कई सुझाव दिये हैं। अध्ययन केंद्र ने बजट तैयार करने के पूर्व योजनाओं का विनिश्चय, योजनाओं/कार्यक्रमों में ओनरशिप का अभाव, ट्राइबल इकोनॉमी, संसाधन अभिवृद्धि जैसे कई विषयों को गंभीरता से उठाते हुए इस दिशा में अपने सुझावों से वित्त मंत्री को अवगत कराया है।
संस्था ने ग्रोथ मैटर्स उक्ति का उल्लेख करते हुए कहा है कि जीएसडीपी में यदि निरन्तरता, सतत प्रवाह अर्थात क्रमिक वृद्धि बनी रहती है तो इसे वित्तीय प्रशासन की आदर्श स्थिति माना जाता है। इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। साथ ही सरकार वित्तीय उत्तरदायित्व से संबंधित योजनाओं/कार्यक्रमों के लिए कालबद्ध कार्यान्वयन’ और ‘उत्तरदायित्व’ निरूपित करे तो झारखंड में ग्रोथ तेजी से सुनिश्चित होगा।


उसने आगाह किया है कि प्रायः विकसित राज्य केन्द्र सरकार, वित्तीय संस्थानों, बैंक आदि से नयी-नयी योजनाओं, कार्यक्रमों के आलोक में अपेक्षाकृत सहायता, ग्रांट इन एड, ऋण सहाय्य बटोर लेते हैं और कमजोर राज्य पीछे छूट जाते हैं। ऐसे में झारखंड को कृषि, सिंचाई, निर्माण, कल्याण, पलायन, पर्यावरण, जनजातीय हित आदि को ध्यान में रखकर लोकहित की योजनाओं, कार्यक्रमों को आगे रखना चाहिए। इसके अलावा आंतरिक वित्तीय प्रबंधन के लिहाज से चेताया है कि प्रायः बड़ी राशि पीएल एकाउंट में रख दी जाती है और उसका विनियोजन समय-सीमाधीन नहीं होता। ऐसी दशा में उससे मिलनेवाले सूद का दुर्विनियोजन होता है क्योंकि एतदसंबंधी कोई वित्तीय प्रावधान नहीं है। आम बजट राज्य की मौलिक चुनौतियां, आवश्यकताओं, संभावनाओं एवं समेकित विकास को आधार मानकर तैयार किया जाय।
संस्था ने बजट तैयार करने के पूर्व योजनाओं की प्राथमिकता का विनिश्चिय करने के लिए लंबित योजनाओं/कार्यक्रमों की गहन समीक्षा कर वर्षांत में उपलब्ध अनुपयुक्त राशि का विनियोजन करने की सलाह दी है। कहा है कि इसी प्रकार केन्द्रीय/केन्द्र प्रायोजित योजनाओं/कार्यक्रमों के लिये कर्णांकित धन की अधिप्राप्ति और विनियोजन में सचेष्टता बरती जाय। राज्य सरकार वित्तीय संस्थानों से संसाधन हेतु सतत संपर्क और सहभागी की नीति पर अमल करे। अल्पकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं के लक्ष्य प्राप्ति का ससमय विनिर्धारण करे। वर्षांत में अग्रिम निकासी पर कड़ी नजर रखे बिना अगले वित्तीय वर्ष में योजनाओं पर काम करने में मुश्किल आती है। किसी भी हाल में सरेंडर, पीएल खाते में जमा और मद परिवर्तन को प्रोत्साहन नहीं दिया जाना चाहिए।
संस्था का मानना है कि योजनाओं/कार्यक्रमों या अन्य वित्तीय आर्थिक उत्तरदायित्व वाले कार्यों में दूरदर्शिता का अभाव देखा जाता है। यह ग्रोथ के लिए समीचन नहीं है।


अध्ययन केंद्र ने कहा है कि झारखंड में आदिम जनजाति सहित जनजातीय आबादी 26 प्रतिशत है लेकिन निर्माण, स्वास्थ्य, उद्यमिता, कृषि, व्यापार सहित विकास के अधिकतर मानकों में इतनी बड़ी आबादी औसत राष्ट्रीय विकास ही नहीं, राज्य में भी तुलनात्मक दृष्टि से पीछे है। 24 वर्षों के सतत प्रयास के बावजूद इनका स्तरीय उन्नयन समेकित नहीं है। ऐसी स्थिति में  ‘जनजातीय-आर्थिकी’ को समृद्ध करने के उद्देश्य से योजना एवं बजट की संरचना की अधिक आवश्यकता है। इसके लिये सभी सामाजिक, आर्थिक हितधारकों के परामर्श से केन्द्र सरकार और वित्तीय संस्थाओं के सहयोग की जमीनी स्तर के कार्यक्रमों को बजट में सन्निहित किया जाय। जनजातीय उपयोजना का सफल कार्यान्वयन इसी संदर्भ में हो। जनजातीय उपयाजेना को अधिक तर्कसंगत बनाया जाय और इसे जनजातीय विकास के लिये ही कर्णांकित किया जाये।
संस्था ने समाज हित में एकीकृत विकास लय हेतु कृषि, रोजगार, सिंचाई, स्वावलंबन, स्वास्थ्य में आउटकम आधारित विनियोजन आवश्यक बताया है।
उसने आगाह किया है कि संसाधन अभिवृद्धि के उपक्रम ‘उत्कृष्ट बजट’ की पहली प्राथमिकता होती है। साथ ही बिना किसी दबाव, लोभ या अनावश्यक दंडात्मक प्रक्रिया के राजस्व वृद्धि के उपाय बेहतर वित्तीय प्रबंधन के उदाहरण माने जाते हैं।


बजट में सर्वजन कल्याण निहित होता है, अतः इसका रिफ्लेक्शन प्रति व्यक्ति आय में और उसकी क्रय शक्ति के अलावा जीवन स्तर, उत्पादन, बाजार आदि में दिखना आवश्यक होता है। यह आवश्यक है कि बजट में वित्तीय अनुशासन दिखाई दे और विनियोजन का आउटकट राज्य के आर्थिक ग्रोथ और समृद्धि में हो।
 प्रायः देखा जाता है कि हमारी राजस्व प्राप्तियां मौलिक रूप से केन्द्रीय करों की हिस्सेदारी, अनुदान, सहायता आदि में वर्धित दिखाई पड़ती हैं। उसमें राज्य के आंतरिक संसाधन की सहभागिता या स्वकर राजस्व कम होता है। अतः आतंरिक संसाधन बढ़ाने का सतत् प्रयास हो। हर हाल में प्रशासनिक व्यय कर राजस्व से ही आच्छादित हो। संस्था ने सुझाव दिया है कि मांगों के खर्च और विनियोग के अंतर को सरकार व विभाग समझते हुए विनियोग आउटकम दें। प्रत्येक विनियोग आउटकम देता है, खर्च नहीं।
संस्था ने खनन क्षेत्रों में डीएमएफ को शत प्रतिशत परिणामी बनाने की सलाह देते हुए कहा है कि इसका उपयोग वैसे मदों में न हो, जिसके लिए मनरेगा आदि में उपबंध है। राज्य सरकार इस व्यय की उपादेयता पर कड़ी नजर रखे। उसने मांग की है कि सरकार 2025-26 के बजट में राज्य की चुनौतियों को देखते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, स्वरोजगार, एमएसएमईख् उद्यम, प्रशिक्षण मद में वृद्धि करे।
सामाजिक आर्थिक एवं संसदीय अध्ययन केंद्र के सचिव अयोध्यानाथ मिश्र ने बताया कि राज्य बजट एवं योजना तथा कृषि एवं संबद्ध सेवाओं के प्रसंग में संस्था द्वारा प्रतिवर्ष सम्यक सुझाव दिया जाता है। इसमें संसाधन अभिवृद्धि, प्रशासनिक व्यय में मितव्ययिता, योजनाओं कार्यक्रमों के विनियोग के आउटकम, कर अपवंचन पर प्रतिषेध और केन्द्र सरकार से अधिकाधिक योजनाओं कार्यक्रमों की स्वीकृति पर बल दिया जाता है। बजट पर समेकित सुझाव मुख्यमंत्री, वित्तमंत्री एवं वित्त विभाग के अबुआ बजट संबंधी मेल, ऐप और साईट पर भेज दिया गया है।

(नोट- ये लेखकर निजी विचार हैं, इसका द फॉलोअप से कोई लेना-देना नहीं है)

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